हम बुद्धिजीवी हैं
संभल कर बात करियेगा हमसे ..हम बुद्धिजीवी हैं । हम यही देखते रहते हैं की दूसरा क्या बोल रहा , क्या कर रहा और क्या लिख रहा है । उस के बाद ही हमारी कुंद बुद्धि जीवित हो उठती है । वरना हम बस पसरे पड़े रहते हैं ।
पहले एक होटल होता था .. कॉफी हाउस । हम वही पाए जाते थे । रोज़ कोई न कोई मुर्गा फंसा लेते थे , फ्री फण्ड की कॉफी पकौड़े खा के कुर्सी तोड़ते रहते थे । और करें भी क्या ? हम बुद्धिजीवी हैं ।
हमारा काम ? कोई कुछ भी करे उसकी आलोचना करना , हतोत्साहित करना, सजेशंस देना , उपदेश देना औऱ हमेशा ये बताना की उसने क्या गलत किया ! आप हमसे न कहिए कुछ करने को कभी ।
हम तो स्टेडियम में बैठने वाले दर्शक हैं , आप खेलो हम दाँत कुरेदते हुए आपको बताएंगे कि आपने गलत क्या खेला ! चाहे हमने कोई भी गेंद कभी पकड़ी न हो पर हर खेल की बारीकियां हम बता देते है। हम बुद्धिजीवी हैं ।
हमारा ईगो जितना बड़ा होता है उतनी ही छोटी सोच भी होती हैं। हम हर बात पर आहत , हर्ट आदि से होते रहते हैं । अत्यंत मूर्खतापूर्ण बात को हम अचानक सबसे महत्वपूर्ण सिद्ध करने में अपनी जड़ बुद्धि लगा देते हैं ।
अति महत्वपूर्ण बात को हवा हवाई करना कोई हमसे सीखे । आप खुद्दई एडजस्ट होते रहिये हमारी बातों में और हमारे साथ , हम तो होने वाले नहीं । हम बुद्धिजीवी हैं ।
धर्म ,कर्म , राजनीति, समाज शास्त्र ,कला , साहित्य , गद्य , पद्य , सूर ,तुलसी से लेकर फ्रांस और रूस की क्रांति से होते हुए सत्याग्रह और दो बैलों की जोड़ी वाले से लेकर पंजे वाले आज के ज़माने को हमसे अच्छा किसी ने न जाना और न ही पढ़ा , ऐसा हमारा मुगालता रहता है।
हम ऑल राउंडर हैं , हमसे बात कर के कोई ये बूझ ही नही सकता कि हम कितने महामूर्ख हैं । हम बुद्धिजीवी हैं ।
समाज के हर तबके से हमे परेशानी रहती है । गरीब लोग गरीब क्यूँ .. ये हरामखोर लोग ,काम के न धाम के सौ मन अनाज के ! वो अमीर क्यूँ है और होता ही जा रहा है चोट्टा साला , काली कमाई होगी उसकी हमसे पूछो ।
चारो तरफ भ्रष्टाचार फैला है , इस देश का अब कुछ हो नही सकता सड़ता जा रहा है । हमारे जैसे स्वयं घोषित ईमानदार लोगों से ही ईमानदारी और शराफत दोनों बची हुई है । हम बुद्धिजीवी हैं ।
ख़बरदार ! ये हास्य व्यंग्य कथा कहानी हमे मत सुनाइये । वी आर सीरियस पीपल ! हम गंभीरता ओढ़े रहते हैं । हँसी मजाक न हम करते हैं न हमारी बुद्धि के बस में है ।
हमारे पास एक ढक्कन होता है , ज़रा कहीं अक्ल की बात हुई .. हम अपनी बुद्धि पर यही ढक्कन लगा लेते हैं !
हमारी बुद्धि एकदम पाक साफ़ यानी सफाचट … बाहर की ताज़ी हवा लेकर हम इसे और प्रदूषित नही करते क्यूंकि और गुंजाइश ही नही ।
हम बुद्धिजीवी हैं , बुद्धिमान कह कर हमारा अपमान न करें !
यह कहानी मेरे पिताजी ने लिखी है- निरंजन धुलेकर